HARYANA VRITANT

जयपुर से गाड़ी में नींबू भरकर बठिंडा जाने के लिए निकले सोनू और सुंदर को कथित गोरक्षकों ने हमला करके घायल कर दिया। पीड़ित सोनू और सुंदर ने बताया कि जब वे लोग उन्हें बेतहाशा मार रहे थे उस समय वो बार-बार उनसे रहम की भीख मांग रहे थे। दोनों ने उस घटना को अपने जीवन का सबसे बुरा वक्त करार दिया है।

दोनों ने उस घटना को अपने जीवन का सबसे बुरा वक्त करार दिया है।

छोटे-मोटे सामान आदि की खरीद-फरोख्त करके अपने परिवार को संभालते हैं। राजस्थान भी दो रोटी कमाने ही गए थे। हमें गो तस्कर समझ लिया, हम बिश्नोई समाज से हैं भाई साहब। हमारे समाज में तो जीव-जंतुओं और पेड़ों की रक्षा के लिए जान देने की सीख दी गई है।

ये बात राजस्थान में कथित गो-रक्षकों के जुल्म का शिकार हुए सोनू और सुंदर ने दैनिक जागरण से बातचीत के दौरान कही। दोनों ने उस घटना को अपने जीवन का सबसे बुरा वक्त करार दिया है।

ट्रांसपोर्ट का काम करते थे पीड़ित

फतेहाबाद के एक निजी अस्पताल से डिस्चार्ज होने से पहले हुई बातचीत में सोनू और सुंदर ने कहा कि तकरीबन चालीस मिनट में ये सारी घटना हुई और शायद ये चालीस मिनट हमारी जिंदगी के सबसे बुरा वक्त है। उस हादसे को याद नहीं करना चाहते, लेकिन वो मंजर आंखों से हटता भी नहीं है।

सोनू-सुंदर ने घटना की जानकारी देते हुए बताया कि वो अक्सर एक शहर से दूसरे शहर में सामान गाड़ी में भरकर ले जाते हैं और प्रयास करते हैं कि जिस शहर में जाएं, वहां से भी कुछ सामान गाड़ी में लेकर आएं, ताकि आते हुए गाड़ी के तेल का खर्च जेब से न लगे।

जानिए क्या है पूरा मामला

सोनू और सुंदर ने बताया कि बठिंडा ले जाने के लिए नींबू गाड़ी में भर लिए और जयपुर से चल पड़े। उन्होंने बताया कि सबकुछ ठीक लगा, लेकिन राजगढ़ हाईवे पर चढ़ते ही हमें अहसास हो गया कि कुछ लोग हैं, जो गाड़ी के पीछे तेजी से आ रहे हैं। हमारी गाड़ी के बिल्कुल पास आकर उन्होंने गालियां निकालते हुए गाड़ी रोकने को कहा।

उन्होंने कहा कि हमें ये लगा कि ये शायद कोई लुटेरे होंगे, जो गाड़ी को लूटना चाहते हैं, इस डर में हमने गाड़ी नहीं रोकी। वो कई बाइकों पर सवार होकर हमारा पीछा करते रहे। टोल पर कर्मचारी और बाकी मदद मिलने की उम्मीद में हमने खुद गाड़ी लसेड़ी टोल पर रोक ली।

उन लोगों को किसी का डर नहीं था और सीधा हमला कर दिया। जब वो लोग हमें बेतहाशा मार रहे थे, उस समय हम बार-बार उनसे रहम की भीख मांग रहे थे। हमें तबतक भी अंदाजा नहीं था कि वो लोग क्यों मार रहे हैं। उस समय तो यही लगा कि आज मौत का दिन आ गया है और अब मर ही जाएंगे।

फिर उन्होंने अचानक मारना-पीटना बंद कर दिया और मोबाइल उठाकर फरार हो गए। इसके बाद राजगढ़ के अस्पताल में ही होश आया और फिर स्वजनों को सूचित किया।