पराली के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है. फिर भी हर साल पराली जलाने की घटनाएं सामने आती हैं. पराली को हिसार के एक युवक ने अवसर में बदल दिया और इससे लाखों कमा रहा है. दरअसल, हिसार के एमबीए पास युवा विजय श्योराण ने पराली से बायो-कोल बनाने का प्रोजेक्ट बनाया है, जिसके जरिए किसान पराली का इस्तेमाल कोयला बनाने में कर सकते हैं. किसानों को पराली जलाने की सही कीमत मिलेगी. साथ ही, इससे प्रदूषण की समस्या से भी निपटा जा सकेगा.

  • युवा किसान विजय श्योराण ने बताया कि पराली जलाने से दिल्ली और उसके आसपास गैस चैंबर बन जाता है. उन दिनों में दृश्यता के साथ- साथ सांस लेने में भी दिक्कत होती है. ऐसे में अगर 50 फीसदी से ज्यादा पराली का निस्तारण इन प्लांटों के जरिए किया जाए तो प्रदूषण में भारी कमी आएगी और किसान पराली नहीं जलाएंगे.
  • इसके अलावा, जिन फैक्ट्रियों में काला कोयला इस्तेमाल होता है उन्हें यह 20 रुपये प्रति किलो की दर से मिलता है. ऐसे में कोयले के विकल्प के तौर पर बायोकोल का इस्तेमाल किया जा सकता है, जो 9 रुपये प्रति किलो मिलता है. वहीं, यह कम प्रदूषण फैलाता है और काले कोयले की तुलना में कम सल्फर डाइऑक्साइड भी पैदा करता है.
  • पराली के माध्यम से कोयला बनाने के लिए ब्रिकेटिंग मशीन से गाय के गोबर की खाद मिलाकर कोयला तैयार किया जाता है. इसमें पहले पराली को पीसा जाता है और फिर उसमें 30 प्रतिशत गोबर की खाद मिलाकर घोल बनाया जाता है. यह घोल ब्रिकेटिंग मशीन के बायोकोल में तैयार किया जाता है. साथ ही, इससे खेतों में बचे कचरे को जलाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी.

खास बात यह है कि करीब 2 साल पहले शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट अब कई लोगों को रोजगार दे रहा है. इस प्रोजेक्ट को हरियाणा कृषि विभाग ने भी सराहा है. कृषि विभाग ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक प्रगतिशील किसान की कहानी भी पोस्ट की है. साथ ही, वह काफी पॉपुलर भी हो गए हैं.

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