Chandigarh News हरियाणा समेत अन्य राज्यों की डीएपी खाद की आपूर्ति केंद्र सरकार पर निर्भर है। रबी सीजन के दौरान अक्टूबर से दिसंबर तक लगभग 60 लाख टन डीएपी की आवश्यकता होती है। समय पर पर्याप्त आपूर्ति न होने के कारण हर साल किसानों को खाद संकट का सामना करना पड़ता है।
खाद आपूर्ति: आंकड़ों की स्थिति
2023 में सितंबर से 7 नवंबर तक 2.11 लाख मीट्रिक टन डीएपी वितरित किया गया था। वहीं, 2024 में इसी अवधि के दौरान यह घटकर 1.71 लाख मीट्रिक टन रह गया।
- मांग-आपूर्ति का अंतर: अक्टूबर की शुरुआत में केंद्र सरकार के पास 15-16 लाख टन डीएपी था, जबकि मांग 27-30 लाख टन थी।
- खाद स्टॉक समय पर उपलब्ध न होने से किसानों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।
हरियाणा सरकार का केंद्र को पत्राचार
हरियाणा सरकार ने डीएपी संकट को लेकर केंद्र को कई पत्र लिखे:
- 20 सितंबर: कृषि विभाग ने अक्तूबर और नवंबर के लिए पर्याप्त डीएपी आवंटन की मांग की।
- 26 सितंबर: मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री को पत्र लिखकर आपूर्ति सुनिश्चित करने को कहा।
- 14 अक्टूबर: कृषि विभाग ने दोबारा पत्र लिखा।
- 20 अक्टूबर: मुख्यमंत्री ने एक बार फिर पूर्ण आपूर्ति की मांग की।
विशेषज्ञों की राय: डीएपी संकट के तीन बड़े कारण
- खेती के बदलते तरीके
- किसान डीएपी को प्राथमिकता दे रहे हैं क्योंकि यह उपयोग में आसान है।
- सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) का उपयोग घट गया है, जबकि यह डीएपी जितना ही प्रभावी है।
- सरसों की खेती में डीएपी के बजाय सल्फर का उपयोग बेहतर हो सकता है क्योंकि यह तेल की गुणवत्ता को बढ़ाता है।
- अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि
- रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते डीएपी की कीमतें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी हैं।
- केंद्र सरकार ने सब्सिडी कम दी, जिससे आयात प्रभावित हुआ।
- अधिक खपत और निगरानी की कमी
- किसान जरूरत से ज्यादा खाद का उपयोग कर रहे हैं।
- पड़ोसी राज्यों के किसान भी हरियाणा से डीएपी खरीद रहे हैं।
समाधान की दिशा में सुझाव
- किसानों को एसएसपी और सल्फर जैसे विकल्पों के बारे में जागरूक किया जाए।
- कृषि अनुसंधान की सिफारिशों का अधिक प्रचार किया जाए।
- खाद उपयोग पर निगरानी और रिकॉर्डिंग के लिए उचित प्रणाली लागू की जाए।
हरियाणा सरकार का दावा
हरियाणा सरकार ने केंद्र के साथ बेहतर समन्वय के कारण डीएपी की उपलब्धता में सुधार का दावा किया है। अब तक राज्य को 2.06 लाख मीट्रिक टन खाद उपलब्ध कराया गया है। हालांकि, किसानों को सलाह दी गई है कि वे खाद का उपयोग सोच-समझकर और सही समय पर करें।