“गुरुग्राम की प्राचीन रामलीला: सालों से बनी रही गंगा जमुनी तहजीब की झलक” -1904 में इस भव्य रामलीला का मंचन शुरू हुआ. इसका इतिहास पटौदी के नवाब मुट्टन मिया से जुड़ा है. इस रामलीला का मंचन बेहद निराले अंदाज में होता है. यहां रामायण की चौपाइयां गाई जाती है. गुरुग्राम के पटौदी में आयोजित होने वाली रामलीला मंचन का इतिहास 119 साल पुराना है. बताया जाता है कि 1904 में नवाब पटौदी के निधन के बाद खाली पड़ी गद्दी के लिए अंग्रेज़ों ने आवेदन मंगवाए. इसी नवाबी के लिए पटौदी के मुट्टन मियां ने भी आवेदन किया था. जब मुट्टन मियां अपने पुरोहित के साथ दिल्ली के लालकिला पहुंचे थे तो लालकिला मैदान में रामलीला का मंचन हो रहा था.
आयोजकों की मानें तो रामलीला में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग अलग-अकग तरीको से रामलीला मंचन में सहयोग करते हैं.
बताया जाता है कि सैफ अली खान के पिता नवाब मंसूर अली खान पटौदी इस ऐतिहासिक रामलीला मंचन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे.
- रामलीला के चंदे से लेकर कलाकारों को सम्मानित करना, उनका हौसला अफजाई करना नवाब की दिनचर्या में शामिल था. इतना ही नहीं सैफ अली खान परिवार से रामलीला के लिए चंदा भी भेजा जाता है.