Job Fair में दीपेन्द्र हुड्डा, कन्हैया कुमार और अन्य।

देश में युवाओं के भविष्य और रोजगार (Employment) को लेकर सियासी सरगर्मी लगातार बनी रहती है। एक ओर जहां सरकार रोजगार सृजन के दावे करती है, वहीं विपक्ष समय-समय पर महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाता रहा है। इसी क्रम में इस बार कांग्रेस ने एक नया प्रयोग किया है—धरना, प्रदर्शन और नारेबाज़ी से हटकर युवाओं को सीधे रोजगार से जोड़ने की पहल की है। दिल्ली (Delhi) के तालकटोरा स्टेडियम में इंडियन यूथ कांग्रेस (IYC) द्वारा आयोजित ‘मेगा जॉब फेयर’ (Job Fair) इसी नई रणनीति का हिस्सा है, जिसे कई विश्लेषक कांग्रेस की ‘रचनात्मक राजनीति’ के रूप में देख रहे हैं।

वर्ष 2014 में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने केंद्र की सत्ता हासिल की थी और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे। इसके बाद से भाजपा सरकार ने यह दावा किया कि रोजगार के सृजन की दिशा में ठोस कार्य हुए हैं। सरकारी आंकड़े भी इस दावे का समर्थन करते हैं, जिसमें यह बताया गया कि सरकारी (Public) और निजी (Private) दोनों क्षेत्रों में युवाओं, विशेषकर छात्रों को रोजगार मिला है।

हालांकि भारत जैसे जनसंख्या बहुल देश में रोजगार का संकट पूरी तरह समाप्त नहीं हो सकता। बढ़ती जनसंख्या और सीमित अवसरों के बीच रोजगार की मांग लगातार बनी रहती है और यही कारण है कि यह मुद्दा भारतीय राजनीति में स्थायी रूप से बना हुआ है। आज 11 वर्षों बाद परिस्थितियां कुछ बदली हैं—नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं और कांग्रेस तीन बार से विपक्ष की भूमिका में है।

भाजपा के वादों की पृष्ठभूमि में कांग्रेस का जवाब

ऐसे में कांग्रेस भी समय-समय पर महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा अपने-अपने तरीकों से उठाती रही है। लेकिन इस बार कांग्रेस ने इस विषय को उठाने का तरीका बदला है। परंपरागत विरोध, भाषणों और धरनों की बजाय इस बार कांग्रेस ने एक अलग दिशा में पहल करते हुए दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक मेगा जॉब फेयर का आयोजन किया।

यह आयोजन कांग्रेस की युवा इकाई इंडियन यूथ कांग्रेस (IYC) द्वारा किया गया, जिसमें कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा (Deepender Hooda), AICC सदस्य कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar), और कई अन्य प्रमुख नेता उपस्थित रहे। यह कार्यक्रम उस समय चर्चा में आ गया जब बताया गया कि इसमें करीब 100 कंपनियों को आमंत्रित किया गया और उनके माध्यम से लगभग 5000 नौकरियों के अवसर उपलब्ध कराए गए।

हालांकि, यह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि वास्तव में इस मेगा जॉब फेयर से कितने युवाओं को रोजगार मिला है। लेकिन तस्वीरें और घटनास्थल की झलकियां बताती हैं कि बड़ी संख्या में युवा इस कार्यक्रम में पहुंचे थे। खुद कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा द्वारा जारी की गई तस्वीरों में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में युवाओं की भीड़ देखी जा सकती है।

क्या है राजनीतिक पंडितों की राय?

राजनीतिक विश्लेषक इस जॉब फेयर को कांग्रेस द्वारा अपनाई गई ‘रचनात्मक राजनीति’ की नई शैली के रूप में देख रहे हैं। यह प्रयास दिखाता है कि “पार्टी अब केवल सरकार की आलोचना तक सीमित न रहकर, व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करने की ओर भी कदम बढ़ा रही है
गौरतलब है कि बीते वर्ष हरियाणा में और इस वर्ष दिल्ली में कांग्रेस का प्रदर्शन अपेक्षाकृत कमजोर रहा था। हरियाणा में तो कांग्रेस जीत के मुहाने तक पहुंचने के बाद भी हार गई थी।
ऐसे में दिल्ली में आयोजित इस जॉब फेयर में हरियाणा के नेताओं की सक्रियता को कई राजनीतिक विश्लेषक संदेशात्मक रणनीति के रूप में देख रहे हैं। कुछ का मानना है कि कांग्रेस ने रचनात्मक रणनीति अपनाने में देर कर दी, जबकि यह बहुत पहले होना चाहिए था।

भीड़, भागीदारी और भावनाएं

यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि इस जॉब फेयर से कांग्रेस को कितना राजनीतिक लाभ मिलेगा, लेकिन यह निश्चित है कि यदि इससे युवाओं को वास्तव में रोजगार मिला है, तो यह कांग्रेस के लिए छवि सुधार का एक प्रभावी साधन बन सकता है।
जल्द ही इस पूरे आयोजन की प्रभावशीलता और आंकड़ों को लेकर रिपोर्ट सार्वजनिक होने की संभावना है।