हरियाणा के फतेहाबाद के गांव भट्टू बुआन में कर्ण कोट टीले से ऐतिहासिक महत्व की मणि मिली है। मणि को अगर लाइट दिखाई जाए तो यह अंगारे की तरह दिखाई देती है। इस प्रकार की मणियां अक्सर समुद्र में मिलती हैं। माना जा रहा है कि पौराणिक काल में इसे यहां पर व्यापार के जरिये लाया गया था।
फतेहाबाद के भूना के पास स्थित गांव भट्टू बुआन के कर्ण कोट टीले में शोध के दौरान शोधार्थी अजय कुमार को समुद्र से निकलने वाली गेरूआ रंग की मणि मिली है। मणि को प्रकाश में रखने पर ये आग की अलग-अलग झलक दिखलाती है। कई बार यह अंगारे की तरह जलती दिखाई देती है, तो कई बार इसमें त्रिकोणीय संरचनाएं उभरती हैं, जो इसको अति दुर्लभ बनाती हैं।गांव के शोधार्थी ने मणि खोजने का दावा किया है। एक सींग वाले हिरण की टेराकोटा की मूर्ति के भी अवशेष मिले हैं। पुरातत्व विभाग इस मणि व टेराकोटा को अपने संरक्षण में लेगा। ऐसी मणियां समुद्र में मिलती हैं।
सात साल पहले हुई थी खोज
शोधार्थी अजय कुमार का दावा है कि जब उन्हें गांव से कुछ दूरी पर खेतों में बिखरे हुए पत्थर और कंकाल के अंश मिले तो फिर उन्होंने खुद ही इस पर शोध करना शुरू कर दिया था। इसके बाद कई चीजें मिली। इनमें कुछ चीजें तीन हजार साल पुरानी थीं, जो कुषाण वंश व गुप्तवंश काल की थी।
कर्ण कोट टीले से मिला एक सींग वाले हिरण का टेराकोटा
माना जाता है कि यहां पर करनाल के राजा कर्ण का किला था, जिस कारण इसको कर्ण कोट टीले के नाम से जाना जाता है। अजय ने बताया कि यहां पर मिली पुरातत्व महत्व की चीजों को पुरातत्व विभाग की टीम को सौंप दिया है। वहीं, विभाग की टीम ने अजय को जिम्मेदारी दी है कि वह इस जगह की देखरेख करें और अन्य कोई चीज मिले तो उन्हें अवगत करवाते रहें।
मौर्य काल, कुषाण, गुप्तवंश तथा मुगल काल के मिल चुके हैं अवशेष
यहीं एक कुआं भी है, जो काफी वर्ष पुराना है। संगमरमर के लाल पत्थर के टुकड़े मिले थे, जो दिल्ली के लाल किले के निर्माण में प्रयोग हुआ है। कुषाण समय का एक पत्थर ऐसा है, जो फर्श को चिकना बनाने के लिए प्रयोग होता है। जो चीजें पुरातत्व विभाग को सौंपी गई हैं, वह मौर्य काल, कुषाण, गुप्तवंश तथा मुगल काल के अवशेष हैं। अजय कुमार ने बताया कि यहां संकेत है कि यह महानगर वैदिक काल से अस्तित्व में था, जो सरस्वती नदी के तट पर स्थापित