HARYANA VRITANT

Haryana News हरियाणा निकाय चुनाव में भाजपा की जीत से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी का वर्चस्व और मंत्रियों की साख मजबूत हुई है। वहीं, प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली की कुर्सी पर मंडरा रहा खतरा भी टल गया है। इस जीत में भाजपा के माइक्रो मैनेजमेंट, आक्रामक प्रचार और संगठन की मजबूती ने अहम भूमिका निभाई।

निकाय चुनाव में विधानसभा जैसी रणनीति

भाजपा ने निकाय चुनाव को विधानसभा चुनाव की तर्ज पर लड़ा। हर मंत्री को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गईं, साथ ही विधानसभा चुनाव में हारे हुए उम्मीदवारों को भी सक्रिय भूमिका दी गई। इससे पार्टी को न केवल बढ़त मिली, बल्कि अंदरूनी गुटबाजी को भी काबू में रखा गया।

सीएम सैनी की चुनावी कमान और संगठन का जोरदार प्रबंधन

सीएम सैनी ने खुद 30 से अधिक निकायों में प्रचार किया और जनता से सीधा संवाद किया। संगठन के स्तर पर लगातार बैठकें और समीक्षा की गईं, जिससे कार्यकर्ता चुनावी मोड में सक्रिय रहे। पांच स्तरों पर प्रबंधन कर हर घर तक भाजपा की पहुंच सुनिश्चित की गई।

मेयर चुनाव के लिए अलग रणनीति

मेयर चुनाव के लिए पार्टी ने विशेष रणनीति अपनाई। जिला स्तर के शीर्ष नेताओं को जिम्मेदारी दी गई और विधानसभा चुनाव में बगावत करने वालों से दूरी बनाए रखी गई। इस बार किसी ने खुलकर बगावत करने की हिम्मत नहीं की, जिससे भाजपा को फायदा मिला।

प्रदेश अध्यक्ष को मिली राहत

निकाय चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली पर लगे गंभीर आरोपों से उनकी कुर्सी खतरे में थी, लेकिन निकाय चुनाव में मिली जीत ने उनका कद फिर से बढ़ा दिया। उनके नेतृत्व में 45 लाख नए सदस्य बनाए गए थे, जिसका असर चुनावी नतीजों में भी दिखा।

ट्रिपल इंजन सरकार का फॉर्मूला काम आया

भाजपा ने “ट्रिपल इंजन सरकार” (निकाय, राज्य और केंद्र में भाजपा) का नारा दिया, जो जनता को आकर्षित करने में सफल रहा। मतदाताओं ने माना कि विकास कार्यों के लिए निकाय में भी भाजपा की सरकार होना जरूरी है, जिससे पार्टी को भारी जीत मिली।