HARYANA VRITANT

इनेलो नेता अभय चौटाला इस बार भतीजे दुष्यंत के सामने ताल ठोकेंगे। ताऊ देवीलाल की राजनीतिक विरासत संभालने की सियासी जंग चल रही है। जींद पुराना गढ़ रहा है। अभय चौटाला ने दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ने के संकेत  दिए हैं।

पूर्व डिप्टी दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला

इनेलो नेता अभय चौटाला इस बार दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं। ऐलानाबाद से वह इस समय विधायक हैं और इनेलो उनको फिर से यहां से अपना प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि चौटाला अपने भजीते दुष्यंत चौटाला के सामने उचाना कलां से भी ताल ठोक सकते हैं। 

खुद अभय चौटाला ने इसके संकेत दिए हैं। चौटाला ने कहा कि वह दो स्थानों से चुनाव लड़ेंगे और दूसरी सीट कार्यकर्ता तय करें। लोकसभा चुनावों से पहले अभय चौटाला ने अपनी पदयात्रा के दौरान ये ऐलान किया था उचाना कलां से इनेलो मुख्यमंत्री के चेहरे को मैदान में उतारेगी, क्योंकि बसपा के साथ गठबंधन के बाद इनेलो अभय चौटाला को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुकी है।

दुष्यंत-अभय में 36 का आंकड़ा

पूर्व डिप्टी दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला के बीच 36 का आंकड़ा है। सार्वजनिक मंचों पर और विधानसभा तक के अंदर दोनों के बीच तीखी नोंक-झोंक हो चुकी हैं। जजपा से उचाना से प्रत्याशी हैं। इनके मुकाबले चौधरी बीरेंद्र सिंह बेटे बृजेंद्र सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। 

इस समय बसपा के साथ गठबंधन करके इनेलो नेता अभय चौटाला उत्साहित हैं। दूसरा जजपा से ठिठका वोट बैंक इनेलो के तरफ आने की उम्मीद है। जजपा का संगठन बिखर चुका है और ओमप्रकाश चौटाला की अधिक उम्र को देखते इनेलो का पुराना वैंक सहानुभूति के तौर पर डायवर्ट हो सकता है।

चुनाव लड़ने के कई मायने

अभय के उचाना कलां से चुनाव लड़ने के कई राजनीतिक मायने हैं। सबसे पहला तो यह है कि इस समय जजपा पूरी तरह से बिखरी हुई है और जजपा के चलते पिछली बार इनेलो की यही स्थिति थी। उस समय सहानूभूति के दम पर जजपा दस सीटें जीतने में कामयाब रही थी और इनेलो केवल एक सीट पर सिमटकर रह गई थीं। 

अभय अब अपने भतीजे से वो राजनीतिक हिसाब बराबर करने के मूड में हैं। दूसरा, सबसे बड़ा कारण ताऊ देवीवाल की विरासत संभालने की जंग है। हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला पहले ही अभय चौटाला को अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर चुके हैं। अगर अभय दुष्यंत को यहां पर घेरते हैं तो जींद क्षेत्र में इनेलो की पकड़ मजबूत हो जाएगी, क्योंकि जींद इनेलो का पुराना गढ़ रहा है। 

उचाना से ही तय होगी कि ताऊ देवीलाल की विरासत कौन संभालेगा। हालांकि, यहां पर दुष्यंत चौटाला ने भी पूरी ताकत झोंक रखी है, क्योंकि उनके लिए यह चुनाव वजूद बचाने वाला है। साढ़े चार सत्ता में रहने के दौरान उचाना में कराए विकास कार्यों के नाम पर वह वोट मांग रहे हैं।