केन्द्र सरकार के एक फैसले से बासमती धान उत्पादक किसानों के बीच नाराजगी बनी हुई है. बता दें कि हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश की मंडियों में बासमती धान की आवक शुरू हो गई है लेकिन किसानों को पिछले साल के मुकाबले भाव कम मिल रहा है जिससे उनमें एक अलग तरह का गुस्सा बना हुआ है.
किसानों का कहना है कि उन्हें इस साल बासमती धान की बिक्री में नुकसान झेलना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि इस साल प्रति क्विंटल 500 रूपए तक भाव कम मिल रहा है जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान हो रहा है. बासमती चावल ग़रीब व्यक्ति का भोजन नहीं है, ऐसे में सरकार द्वारा उठाया गया ये कदम समझ से परे है.
- किसानों का आरोप है कि बासमती चावल के मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 1,200 डॉलर प्रति टन तय करने की वजह से उन्हें नुकसान झेलना पड़ रहा है.
- बता दें कि भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश हैं और यह अपने उत्पादन का 80 फीसदी चावल एक्सपोर्ट करता है. ऐसे में इसका भाव निर्यात की वजह से कम- ज्यादा होता रहता है.
अगर बासमती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 850 डॉलर प्रति टन से अधिक होगा तो इससे व्यापारियों के साथ- साथ किसानों को भी नुकसान झेलना पड़ेगा क्योंकि व्यापारी किसानों से कम कीमत पर धान खरीदी करेंगे.
किसान कल्याण क्लब के अध्यक्ष विजय कपूर का कहना है कि मिलर और निर्यातक किसानों को उचित भाव नहीं दे रहे हैं. वे किसानों से कम कीमत पर बासमती खरीद का दबाव डाल रहे हैं. उनकी माने तो सरकार 15 अक्टूबर के बाद मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस का फैसला वापस ले लेती है तो किसानों को बहुत अच्छा मुनाफा होगा.