9 जुलाई को केंद्र सरकार की श्रमिक-विरोधी, किसान-विरोधी और कॉर्पोरेट-समर्थक नीतियों के खिलाफ देशभर में हड़ताल का आह्वान किया गया है। इस हड़ताल में 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी और मजदूर भाग लेंगे। इसका आयोजन 10 प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगी संगठनों ने किया है, जिनमें AITUC, HMS, CITU, INTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF, UTUC आदि शामिल हैं। संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि श्रमिक यूनियनें भी इस हड़ताल को समर्थन दे रही हैं।

हड़ताल की प्रमुख मांगें:
- केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए चार श्रम संहिताओं (लेबर कोड्स) को रद्द करना।
- पुरानी पेंशन योजना को बहाल करना।
- न्यूनतम वेतन ₹26,000 करना।
- ठेका प्रथा को समाप्त करना।
- सरकारी विभागों के निजीकरण पर रोक लगाना।
- बेरोजगारी भत्ते की मांग।
ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि सरकार ने कॉर्पोरेट घरानों को 17 लाख करोड़ रुपये की राहत दी, जबकि मजदूरों और किसानों की मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
सेवाएं होंगी प्रभावित: इस हड़ताल का असर बैंकिंग, डाक, कोयला, परिवहन, निर्माण और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में दिख सकता है। उत्तर प्रदेश में बिजली क्षेत्र के 27 लाख कर्मचारी निजीकरण के विरोध में शामिल होंगे, जिससे बिजली आपूर्ति प्रभावित होने की आशंका है।
बिहार में चक्का जाम और बंद: बिहार में महागठबंधन ने चक्का जाम का आह्वान किया है, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी भाग लेंगे। पप्पू यादव ने मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर अलग से बिहार बंद का ऐलान किया है।
हड़ताल की तैयारियाँ: देशभर में जनसभाएं, जागरूकता अभियान और रैलियां 30 जून से शुरू हो चुकी हैं। 8 जुलाई को कई राज्यों में मशाल जुलूस और कैंडल मार्च आयोजित होंगे।
नेताओं की प्रतिक्रिया: अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष सुभाष लांबा ने कहा कि यह हड़ताल लेबर कोड्स के खिलाफ मजदूरों की एकजुट आवाज है। सीटू नेता सुखबीर सिंह ने इसे ऐतिहासिक कदम बताया।
आर्थिक असर: इस हड़ताल से करोड़ों रुपये के आर्थिक नुकसान की संभावना जताई गई है। यूनियनों ने सरकार से संवाद की मांग की है, लेकिन अब तक कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं मिली है। यह हड़ताल देशभर में व्यापक प्रभाव डाल सकती है, और श्रमिकों व किसानों की आवाज को मजबूती दे सकती है।