अरावली की हरियाली के बीच बसा अनंगपुर गांव आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। यह कोई साधारण गांव नहीं, बल्कि 700 वर्षों से बसा एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध गांव है, जहां की आबादी सदियों से खेती और पशुपालन पर निर्भर रही है। लेकिन अब यह गांव एक गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है।


सुप्रीम कोर्ट का आदेश और वन विभाग की कार्रवाई

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अरावली वन क्षेत्र में बने 6497 अवैध निर्माणों को हटाया जाए। इसके तहत वन विभाग और नगर निगम की टीमों ने कार्रवाई शुरू की, और अब तक 70 से अधिक मैरिज गार्डन, बैंक्वेट हॉल और फार्म हाउस ध्वस्त किए जा चुके हैं।

हालांकि आदेश का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण है, लेकिन अब अनंगपुर गांव की बस्तियों पर भी संकट मंडराने लगा है। ग्रामीणों को डर है कि कहीं वे भी इस कार्रवाई की चपेट में न आ जाएं।


राजनीति का दोहरा चेहरा

गांववालों का सबसे बड़ा आक्रोश इस बात को लेकर है कि जिन नेताओं ने साथ खड़े रहने का वादा किया था, वे ही अब पीछे हटते नजर आ रहे हैं।

  • विधायक धनेश अदलखा, जिन्होंने विधानसभा में अनंगपुर और आसपास की कॉलोनियों को अवैध घोषित करने की बात कही थी, अब जनता के बीच खुद को ‘रक्षक’ कह रहे हैं।
  • वहीं केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर भी कहते हैं कि वे गांववालों के साथ हैं, लेकिन कोई ठोस कदम नजर नहीं आ रहा

सच्चाई यह है कि अदलखा ही वो नेता हैं जिनके वकील ने सुप्रीम कोर्ट में गांव को ‘वन क्षेत्र’ बताकर केस लड़ा था। यह दोहरा मापदंड अब जन आक्रोश में बदल चुका है।


महापंचायत में गूंजा एक स्वर — “हमें लाल डोरा चाहिए!”

रविवार को अनंगपुर चौक पर हुई महापंचायत में हजारों ग्रामीण एकत्र हुए। मेवला महाराजपुर, लक्कड़पुर, तुगलकाबाद जैसे पड़ोसी गांवों ने भी एकजुटता दिखाई। ग्रामीणों की एक ही मांग थी —
“अनंगपुर गांव को लाल डोरा क्षेत्र में शामिल किया जाए।”

उनका कहना है कि गांव कोई अतिक्रमण नहीं बल्कि पारंपरिक, पुश्तैनी बसावट है। यहां कोई व्यावसायिक गतिविधि नहीं, सिर्फ लोगों की बुनियादी जीवनशैली चल रही है।


गांव की अस्मिता पर संकट

यह गांव सिर्फ मकानों का समूह नहीं, बल्कि एक जीवंत सामाजिक ताना-बाना है। गांव में स्कूल, मंदिर, पशुशाला, सामुदायिक भवन जैसी मूलभूत सुविधाएं हैं, जिन्हें अवैध बताना ग्रामीणों के इतिहास और संस्कृति का अपमान है।

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह क्षेत्र अंग्रेजों के समय से बसा हुआ है, लेकिन आज तक लाल डोरा की अधिसूचना नहीं की गई। अब उसी ‘कमी’ का फायदा उठाकर गांव को उजाड़ने की साजिश की जा रही है।


पर्यावरण बनाम आजीविका — क्या यह न्याय है?

सवाल उठता है —

  • क्या पर्यावरण बचाने के नाम पर हजारों लोगों की जिंदगी बर्बाद करना न्यायसंगत है?
  • क्या प्रशासन को फार्महाउस और गांव के बीच अंतर नहीं समझना चाहिए?
  • क्या कोर्ट के आदेशों को लागू करते समय इंसानियत और संवेदनशीलता नहीं बरती जानी चाहिए?

आंदोलन का बिगुल बज चुका है

गांववालों ने अब अनिश्चितकालीन धरने की घोषणा कर दी है। उनका साफ कहना है —

“अगर सरकार हमारी नहीं सुनेगी, तो यह आंदोलन पूरे हरियाणा में फैलाया जाएगा।”

यह लड़ाई अब सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि उन तमाम बस्तियों की है जो प्रशासन की अनदेखी की वजह से आज संकट में हैं।


सरकार के सामने दो रास्ते

  1. गांव से संवाद करें और लाल डोरा अधिसूचना की प्रक्रिया को शीघ्र पूरा करें।
  2. या फिर एक और जन आंदोलन को आमंत्रण दें, जिसका असर प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ सकता है।

यह लड़ाई वजूद की है

अनंगपुर गांव की यह लड़ाई सिर्फ जमीन की नहीं — यह उस विरासत, पहचान और आत्मसम्मान की लड़ाई है जो सदियों से चली आ रही है। अगर अब भी सरकार नहीं चेती, तो शायद एक और ऐतिहासिक गांव सिर्फ कागज़ों में बचा रह जाएगा।