पानीपत के मेजर आशीष धौंचक अनंतनाग में टीम के साथ मिशन पर थे। घने जंगलों के बीच आतंकियों से मुठभेड़ चल रही थी। इसी बीच उनकी जांघ में गोली लग गई। आर्मी की मेडिकल टीम आई और उन्हें इलाज के लिए ले जाना चाहा।
मेजर आशीष ने कहा- मैं आतंकियों को मारकर ही जाऊंगा। वे घायल हालत में ही आतंकियों से भिड़ते रहे। करीब 10 घंटे तक उनके पैर से खून बहता रहा। इससे हालत बिगड़ती चली गई। लड़ते-लड़ते उनकी हालत नाजुक हो गई और वे शहीद हो गए।
मेजर आशीष की दिलेरी और देश सेवा के प्रति इस जज्बे का खुलासा मेजर आशीष के दोस्त विकास ने किया। उन्होंने कहा कि मैंने आशीष के साथ केंद्रीय विद्यालय में 9वीं से 12वीं क्लास तक पढ़ाई की। स्कूल टाइम से ही आशीष के मन में हर वक्त बस देश सेवा का जुनून रहता था। आशीष का गोल क्लियर था कि उन्हें सेना में जाना था।
मेजर आशीष धौंचक के जीजा सुरेश दूहन ने कहा- कुछ दिन पहले आशीष से बात हुई। उस वक्त वे बहुत खुश थे। मुझे कह रहे थे कि देश के 4-5 दुश्मन निपटा दिए। बाकियों को भी निपटाकर ही लौटूंगा। 23 अक्टूबर को नए घर में गृह प्रवेश करेंगे। जागरण होगा और हम सब खुशियां मनाएंगे।
- शुक्रवार को मेजर आशीष की पार्थिव देह उनके पैतृक गांव बिंझौल लाई गई। जहां अंतिम दर्शन के बाद वे पंचतत्व में विलीन हो गए। उनकी अंतिम यात्रा में 10 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए। उनकी पार्थिव देह के साथ एक किमी लंबा काफिला था।
अंतिम यात्रा के साथ शहीद मेजर आशीष की बहनें और मां भी बिंझौल आईं। मां पूरे रास्ते हाथ जोड़े रहीं, जबकि बहन भाई को सैल्यूट करती रही। मेजर आशीष की बहन उनकी 2 साल की बेटी को लेकर श्मशान घाट पहुंचीं। उन्हें चचेरे भाई मेजर विकास ने मुखाग्नि दी। इससे पहले सिख रेजीमेंट के जवानों ने उन्हें गन सैल्यूट दिया।