हमको अपराधी बनाया, शोषक हँसता रहा. क्या हमने मेडल इसलिए जीते क्योंकि सिस्टम ने हमारे साथ बुरा बर्ताव किया? घसीटा और फिर हमें गुनहगार बनाया.

मेडल लौटाते ही यह सवाल उठा कि इसे लौटाएं किसे? राष्ट्रपति और पीएम इसे लौटाने पर राजी नहीं हुए. राष्ट्रपति कुछ नहीं बोले. प्रधानमंत्री ने हमें अपने घर की बेटियां बताईं लेकिन एक बार भी सुध नहीं ली.

हमें अब इन तमगों की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इन्हें पहनकर व्यवस्था केवल अपना प्रचार करती है और फिर हमारा नकाब लगाकर हमारा शोषण करती है. अगर हम उस शोषण के खिलाफ बोलते हैं तो वह हमें जेल में डालने की तैयारी करता है

ये पदक पूरे देश के लिए पवित्र हैं और पवित्र पदक रखने का सही स्थान पवित्र गंगा माँ हो सकती है न कि हमारी अपवित्र व्यवस्था जो हमें नकाब लगाकर हमारा फायदा उठाने के बाद हमारे साथ खड़ी है.

अपवित्र व्यवस्था अपना काम कर रही है और हम अपना. अब लोगों को सोचना है कि वह अपनी इन बेटियों के साथ खड़े हैं या उस सफेदी वाली व्यवस्था के साथ जो इन बेटियों को प्रताड़ित कर रही है.

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