वाराणसी: अतीक अहमद वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ा था। उसे 833 मत
मिले थे। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान वह प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में बंद था। उसने घोषणा की थी कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ेगा।
चुनाव लड़ने के लिए अदालत से पेरोल भी नहीं मिल सका। हालांकि, इसके बाद अतीक चुनाव मैदान से हटाना चाहता था लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। उसका नामांकन पत्र वापस नहीं हो सकता था। बनारस के लोगों ने अतीक को समर्थक नहीं दिया। उसका मानना था कि बनारस के मिश्रित आबादी वाले इलाके में उसे अच्छा समर्थन मिलेगा। उसे उम्मीद थी कि कोई राजनीतिक दल भी उसे अपना समर्थक और सिंबल दे सकता है लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
चार दशक से वह आतंक का पर्याय बना हुआ था
अतीक अहमद का संबंध न केवल उमेश पाल हत्याकांड से जुड़ा बल्कि चार दशक से वह आतंक का पर्याय बना हुआ था। उमेश पाल की हत्या के 49वें दिन अतीक और उसके भाई अशरफ का अंत हो गया। इसके ठीक तीन दिन पूर्व उसके बेटे और उमेश पाल के हत्यारे असद इनकाउंटर में मारा गया था।
समय विपरीत हुआ, राजनीतिक संरक्षण का अंत हुआ तो माफिया अतीक के साम्राज्य के नेस्तनाबूद होने की राह बनती गई। संबंधी भी पुलिस की रडार पर आ गए। सरकार के पहले कार्यकाल से ही अतीक के आर्थिक साम्राज्य को कमजोर करने का सिलसिला शुरू हुआ था। उसके बाद से ही उसका साम्राज्य ढहता गया।
गुर्गों की 1100 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हो चुका है
आज इसी का परिणाम है अतीक उसके भाई अशरफ और उसके गुर्गों की 1100 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हो चुका है। पत्नी शाइस्ता और बहन आयशा नूरी दर-दर भटक रही हैं। दो भांजी को भी मुकदमे में नामजद किया गया है। पत्नी पर 25 हजार का इनाम घोषित हो गया है। बेटा उमर लखनऊ जेल में है।