HARYANA VRITANT

किरण चौधरी, जो कांग्रेस से तोशाम विधानसभा क्षेत्र की विधायक थीं, ने हाल ही में भाजपा में शामिल होकर राज्यसभा के उपचुनाव में अपना नामांकन दाखिल किया है। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर गंभीर आरोप लगाने के बाद, चौधरी ने सवा दो महीने पहले भाजपा का दामन थामा था। एक दिन पहले ही उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दिया, और उसी दिन भाजपा ने उन्हें राज्यसभा के लिए उम्मीदवार घोषित किया। नामांकन के दौरान मुख्यमंत्री नायब सैनी उनके साथ थे, और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के प्रति आभार प्रकट करते हुए चौधरी ने कहा कि वे राज्यसभा में हरियाणा के मुद्दों को प्रमुखता से उठाएंगी।

राज्यसभा के लिए भाजपा की किरण चौधरी ने नामांकन भरा, सीएम नायब सैनी थे साथ।

मुख्यमंत्री नायब सैनी ने किरण चौधरी के नामांकन पर बधाई दी

मुख्यमंत्री नायब सैनी ने किरण चौधरी के नामांकन पर बधाई दी और कहा कि भाजपा के सभी विधायकों ने उन्हें समर्थन दिया है। जोगीराम सिहाग, अनूप धानक, और अन्य नेताओं ने भी चौधरी को समर्थन प्रदान किया। भाजपा ने सर्वसम्मति से चौधरी को राज्यसभा भेजने का निर्णय लिया है, उनके लंबा अनुभव और विधानसभा अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल को ध्यान में रखते हुए। 2004 में कांग्रेस ने चौधरी को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वे जीत नहीं सकी थीं। इस बार भाजपा के पास बहुमत है और कांग्रेस ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है, जिससे उनकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है।

राज्यसभा के उपचुनाव पर चर्चा

भाजपा ने 20 अगस्त को विधायक दल की बैठक बुलाई, जिसमें राज्यसभा के उपचुनाव पर चर्चा हुई। बैठक में सीएम नायब सैनी, सभी मंत्री और विधायक शामिल हुए। जजपा के विधायक जोगीराम सिहाग भी बैठक में थे। बैठक के बाद कृषि मंत्री कंवरपाल गुर्जर ने जानकारी दी कि सभी विधायकों ने किरण चौधरी के नाम पर सहमति जताई है। यदि कांग्रेस अपना उम्मीदवार उतारती है, तो भाजपा मुकाबले के लिए तैयार है। भाजपा के पास पूर्ण बहुमत है, और जजपा के बागी विधायक भी पार्टी के संपर्क में हैं।

किरण चौधरी ने भाजपा में शामिल होने के दौरान

किरण चौधरी ने भाजपा में शामिल होने के दौरान राज्यसभा में भेजे जाने और अपनी बेटी श्रुति को तोशाम विधानसभा से टिकट देने का वादा किया था। भाजपा ने पहला वादा पूरा कर दिया है, अब दूसरा वादा पूरा करना बाकी है। हालांकि, भाजपा की नीति “एक व्यक्ति, एक पद” के तहत यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है। आरएसएस ने हाल ही में नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट देने की वकालत की है, जिससे स्थिति और जटिल हो सकती है।